■ ख़ुद सोचिए…

■ ख़ुद सोचिए…
जहाँ अपने ही आपके ख़िलाफ़ बिगुल फूंक कर आपका बेंड बजाने पर आमादा हों, वहां ग़ैरों पर भरोसे की कितनी गुंजाइश बाक़ी रहती है? वो भी आज के क़ातिलाना दौर में।।
【प्रणय प्रभात】
■ ख़ुद सोचिए…
जहाँ अपने ही आपके ख़िलाफ़ बिगुल फूंक कर आपका बेंड बजाने पर आमादा हों, वहां ग़ैरों पर भरोसे की कितनी गुंजाइश बाक़ी रहती है? वो भी आज के क़ातिलाना दौर में।।
【प्रणय प्रभात】