वह कली सी लगी (गीत)
वह कली सी लगी जब भँवर मैं बना,
चाँदनी बन गई चाँद जब भी बना,
देह व्यापार तक ही न सीमित रहा,
आहुति सी लगी,जब हवन मैं बना ।
शोख़ पत्तों पे बैठी तुहीन बिंदु सी,
सप्तरंगी लगी जब भी सविता बना,
प्राण संचार मुझसे भले ही रहा,
प्रियतमा से लगी जब मैं प्रेमी बना ।
ग़ात उसका सुकोमल,अनछुआ सा कुसुम,
गंध जिसमे भरी हो मलय चन्दनी,
होंठ की प्रस्फुटन धनु की प्रत्यंचा सी,
मनसिजा मैं बना जब वह रति सी लगी ।
अमित मिश्र