#मुक्तक-

#मुक्तक-
■ सम्मेलनों के सरगना।
[प्रणय प्रभात]
बरगद सी शाखें फैला कर, मद में झूम रहे हैं।
क़ब्ज़े में धरती कर के, अम्बर को चूम रहे हैं।।
उनके चरण पखार रही है भीड़, मंच नतमस्तक
चार चुटकुले, छह कविताएं लेकर घूम रहे हैं।।
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#कथ्य-
सब पर नहीं किंतु अधिकांश पर लागू।
-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)