भक्त की पुकार “दोहा सप्तक”

अंतर व्याकुल हो रहा, नैनन बरस नीर।
कब सुनोगे दीन की,हे प्रभु करुना वीर॥
भटक रहा हूँ दर-बदर,आस तुम्हारी एक।
थामो पतवार अब मेरी, भवसागर अति टेढ़॥
पुकारूँ तुमको रात दिन, हृदय करे अगोर।
कब दर्शन दोगे मुझे, ओ मेरे चित चोर॥
नहीं जानता और कुछ, बस तेरा ही नाम।
ले लो शरण अब अपनी, करुणा के तुम धाम॥
दुख की बदली घिरी, छाया अंधियारा घोर।
ज्योति दिखाओ प्रेम की, मिटे सकल ये शोर॥
विश्वास अटूट हृदय में, तुम ही हो आधार।
सुनकर आओगे ज़रूर, आलोक की करुण पुकार॥
जब भी भक्त पुकारता, दौड़े आते आप।
दे अभय दान पल में, मिटाते संताप॥
कवि
आलोक पांडेय
गरोठ, मंदसौर, मध्यप्रदेश।