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20 Mar 2025 · 2 min read

दुनिया में पहला विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च 2010 को मनाया गया

#संरक्षण_का_लें_संकल्प
■ आज विश्व गौरैया दिवस पर।
【प्रणय प्रभात】
आज “विश्व गौरैया दिवस” है। जो प्रति वर्ष 20 मार्च को मनाया जाता है। नन्ही गौरैया के जीवन और अस्तित्व के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए। साल 2010 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत हुई थी. किंतु इनके संरक्षण की दिशा में कोई प्रयास सरकारी स्तर पर 15 सालों में नहीं हो सका है। उल्टे पिछले कुछ समय से गौरैयाओं की संख्या में काफी कमी आई है। जिसकी सबसे बड़ी वजह मोबाइल टावर्स से उत्सर्जित रेडियोधर्मी प्रभाव को माना जाता है। प्राकृतिक आपदाओं ने भी इनकी संख्या घटाई है। इसके अलावा जलवायु-परिवर्तन व रासायनिक खेती भी बड़ी बड़ी वजह है। हम सभी को आज इनके संरक्षण का पुनीत संकल्प लेना होगा। ताकि इनकी ऊर्जा भरी चहचहाहट मुंडेरों से आंगन तक सुनाई देती रहे। स्मरण रहे कि ग्रीष्मकाल गौरैया के लिए मारक बनता है। आवश्यक है कि हम इनके दाने-पानी सहित सुरक्षित आश्रय व प्रजनन में मानवोचित सहयोग बनाए रखें। घर के किसी भी हिस्से में मेहनत से बनाए गए इनके घोसलों को बना रहने दें। चूजों के बड़े व समर्थ होने तक। अन्य जीवों के ख़तरे के प्रति सजग रह कर घोसलों और चूजों की थोड़ी सी निगरानी करें। यह छोटे-छोटे प्रयास न श्रमसाध्य हैं और ना ही खर्चीले। कर के देखिए एक बार पहल। यक़ीन मानिए दिल से रूह तक बेहद सुक़ून महसूस करेंगे। इस दिवस विशेष के उपलक्ष्य में पढ़िए मेरी एक छोटी सी संदेशप्रद कविता भी:–
“चिड़िया की चहक, बिटिया की महक
घर को उपवन कर देती है।
हो कोई घुटन, हो कोई थकन,
प्रमुदित हर मन कर देती है।
हो चहक सदा, हो महक सदा,
बस इतनी शपथ उठाएंगे।
आओ सोचें, संकल्प करें,
हम मिल कर इन्हें बचाएंगे।।”
आइए! मातारानी का बाल-स्वरूप मानी जाने वाली कन्याओं (बेटियों) की तरह प्यार-दुलार चिड़ियाओं को देने की शपथ उठाएं तथा समूचे मानव समुदाय को संदेश दें कि चिड़िया भी बिटिया की तरह से संरक्षण व पोषण की अधिकारी है। नहीं भूला जाना चाहिए कि हमारी संस्कृति सदैव से बिटिया और चिड़िया में साम्य स्थापित करती आ रही है। ऐसे में शक्ति-साधना के महापर्व पर यह पुनीत संकल्प तो बनता ही है। सोचिएगा ज़रूर। हो सकता है कि नव संवत्सर की अगवानी का यह सर्वोत्तम उपाय लगे आपको। मैं निरीह जीवों के प्रति संवेदनशील ही नहीं समर्पित भी हूँ। इनके लिए कुछ न कुछ करता रहता हूँ। परिवार के सहयोग से, यथोचित व यथासम्भव। हर दिन आभास करता हूँ इनकी पीड़ा व जिजीविषा को। लिखता भी रहता हूँ अक़्सर। आज भी प्रस्तुत करूंगा एक लघुकथा। एक गौरैया को समर्पित। पढ़िएगा ही नहीं, महसूस भी कीजिएगाके जीवट को।
■ सम्पादक ■
न्यूज़&वयूज (मध्यप्रदेश)
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