मजा आवय नहीं फागुन तोर आये बिना
मजा आवय नहीं फागुन, तोर आये बिना ।
मन कूद के आ जाथे, भुइंया म लाये बिना ।। मजा आवय…
कुक-कुक कोयली के कुकना,
बसन्त के बहार ।
गांव-गांव म झूमय हांसी,
फाग गावत हे खार ।।
रहय नहीं तोर दू दिन के जवानी, तरसाये बिना ।।। मजा आवय …
बइहा बरन मन मतौना,
फागुन रसवा पीयेल खोजथे ।
कारी, लाली ओ परसा फुलवा,
तन म बिरहा बान ल गोभथे ।।
कोयली रांडी चुपय नहीं, चुरकाये बिना ।।। मजा आवय…
होली म फेर सबो सुरता,
भरभर ले बर जाथे ।
रंग गुलाल अउ फाग उड़ाके,
बर बिहाव घर आथे ।।
मानय नहीं अंतस के पंछी, गवन जाये बिना ।।। मजा आवय…
सुखा जाथे चेहरा-चंडी,
मन निमगा अइला जाथे ।
भुंभरा अउ संसो म,
आधा-शीशी हो जाथे ।।
गत-गरहन लहुटय नहीं, सावन आये बिना।। मजा आवय…
फागुन महीना सबले सुघर,
जाड़ लागय न घाम ।
सेंभरा, परसा, देख अमरइया,
लागथे तिरीथ धाम ।।
जावच नहीं एको साल रे फागुन, रीझाये बिना।।।
मजा आवय नहीं फागुन, तोर आये बिना ।।।।