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10 Mar 2025 · 1 min read

***"जिंदगी की राहों में"***

***”जिंदगी की राहों में”***
जिंदगी की राहों में, हम भटक गए हैं।
हालात के मारे, अटक गए हैं।।
बचपन के हाथ छोड़ते ही
जिम्मेदारियों में आकर लटक गए हैं।।
~अभिलेश श्रीभारती~
(साहित्य, लेखन और रचना)

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