***”जिंदगी की राहों में”***

***”जिंदगी की राहों में”***
जिंदगी की राहों में, हम भटक गए हैं।
हालात के मारे, अटक गए हैं।।
बचपन के हाथ छोड़ते ही
जिम्मेदारियों में आकर लटक गए हैं।।
~अभिलेश श्रीभारती~
(साहित्य, लेखन और रचना)
***”जिंदगी की राहों में”***
जिंदगी की राहों में, हम भटक गए हैं।
हालात के मारे, अटक गए हैं।।
बचपन के हाथ छोड़ते ही
जिम्मेदारियों में आकर लटक गए हैं।।
~अभिलेश श्रीभारती~
(साहित्य, लेखन और रचना)