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8 Mar 2025 · 1 min read

प्रत्युत्तर

कहती हूं तुम भी सुन लो,
अब ठहरने का वक्त नहीं।
सपने तो हम भी देखेंगे
यह सिर्फ तुम्हारा हक नहीं।

श्रद्धा से अब काम नहीं ,
विश्वास हमारा भी डोला !
परिस्थितियां जब हुई विषम,
कैसे उतरे अमृत की धारा ?

तुम्हें हार मिले या जीत मिले,
आस्तित्व हमारा भी पीसा !
लालसा तुम्हारी युद्ध का,
सदा ही कारण रहा।

क्यों बहाएं हम आंसू !
अब तुम्हें भी संभलना होगा,
संधिपत्र में हस्ताक्षर ,
अब दोनों को करना होगा !

(नारी तुम केवल श्रद्धा हो ! जयशंकर प्रसाद जी की कविता के प्रत्युत्तर के रूप में लिखी यह कविता नारी दिवस के उपलक्ष्य में सभी नारियों का प्रतिनिधित्व करती नारी की सोच🙏)

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