प्रत्युत्तर
कहती हूं तुम भी सुन लो,
अब ठहरने का वक्त नहीं।
सपने तो हम भी देखेंगे
यह सिर्फ तुम्हारा हक नहीं।
श्रद्धा से अब काम नहीं ,
विश्वास हमारा भी डोला !
परिस्थितियां जब हुई विषम,
कैसे उतरे अमृत की धारा ?
तुम्हें हार मिले या जीत मिले,
आस्तित्व हमारा भी पीसा !
लालसा तुम्हारी युद्ध का,
सदा ही कारण रहा।
क्यों बहाएं हम आंसू !
अब तुम्हें भी संभलना होगा,
संधिपत्र में हस्ताक्षर ,
अब दोनों को करना होगा !
(नारी तुम केवल श्रद्धा हो ! जयशंकर प्रसाद जी की कविता के प्रत्युत्तर के रूप में लिखी यह कविता नारी दिवस के उपलक्ष्य में सभी नारियों का प्रतिनिधित्व करती नारी की सोच🙏)