या ख़ुदा ये जागते में ख़्वाब कैसा आ गया।
या ख़ुदा ये जागते में ख़्वाब कैसा आ गया।
गेसुओं से झाँकता माहताब जैसे आ गया।
जीस्त बन के महके वो साँसों में इस तरह-
भूले हुए इक वर्क में गुलाब जैसे आ गया।
सुशील सरना
या ख़ुदा ये जागते में ख़्वाब कैसा आ गया।
गेसुओं से झाँकता माहताब जैसे आ गया।
जीस्त बन के महके वो साँसों में इस तरह-
भूले हुए इक वर्क में गुलाब जैसे आ गया।
सुशील सरना