हर रोज़ शाम होती है

हर रोज़ शाम होती है
दर्द उतर आता है आँखों में
भर जाती हैं जो आँखे
तब नींद उनमे कहाँ आती है
साँसों में तूफान उतर आते हैं
कुछ यूँ ही रात गुज़र जाती है
तेरी याद आती है, बस तुम नहीं आती
हिमांशु Kulshrestha
हर रोज़ शाम होती है
दर्द उतर आता है आँखों में
भर जाती हैं जो आँखे
तब नींद उनमे कहाँ आती है
साँसों में तूफान उतर आते हैं
कुछ यूँ ही रात गुज़र जाती है
तेरी याद आती है, बस तुम नहीं आती
हिमांशु Kulshrestha