दोहा

1
युग युग तप के बाद ही,पाए हो नर देह।
मन में चाहत मोक्ष यदि,करो राम से नेह।।
2
खुद को ऐसा ढालिये,सज्जन समझे लोग।
भला दूसरों का करें,छोड़ द्वेष का रोग।।
3
अच्छों को ही देखिए,उनसे सीखें काम।
जीवन में आगे बढ़ें, जग में होगा नाम।।
4
ज्ञान प्रेम बाँटा करो,तजकर सब अभिमान।
क्यों करता इतना अहं ,जब तय है अवसान।।
5
रचना ऐसी कीजिए,जिसमें सुर लय तान।
मन मंदिर हर्षित करे,जो दे सुंदर ज्ञान।।
6
करे गैर का जो बुरा, मिलता उसे न चैन।
विचलित मन उसका रहे, नींद न दिवा न रैन।।
7
सबको गले लगाइये, यह है उत्तम बात।
जात-पात सब दूर हो, सब है मानव जात।
8
चुगली निंदा छोड़ कर, करो राम का जाप।
हृदय शांत अपना रखो, मिट जाएगा पाप।।
9
चाहे जैसी हो कमी, बेचो नहीं जमीर।
जो भी है समझो बहुत, मन के बनो अमीर।।
नरेन्द्र सिंह