छत्रपति संभा जी ने मनोबल शत्रु का हिला दिया,
छत्रपति संभा जी ने मनोबल शत्रु का हिला दिया,
ज़ंजीरों में बंधे वीर ने गर्जना से दिल दहला दिया
छत्रपति के एक -एक, अंगों को औरंग काट रहा था,
राष्ट्रप्रेम में हँसकर छावा निज अंगों को बाँट रहा था,
शत्रु के सीने पर वह पर्वत की भाँति खड़े रहे,
वीर मराठा हिंद के बेटे धर्म मार्ग पर अड़े रहे,
काँप उठी थी औरंग की टोली जगदंबा के जापों से,
विनाश लिख डाला औरंग निज कुकर्मों से पापों से
शेर फँसा गीदड़ों के झुंड में अपनो की गद्दारी से,
काट रहे थे गीदड़ सिंह की भुजा को बारी बारी से,
जब भी ज़िम्मा सौंप दिया धूर्तों को पहरेदारी का
इतिहास गवाही देता उन जयचंदों की गद्दारी का,
आस्तीन के साँपों से ही वीर छत्रपति डंसे गए,
जयचंदों के छल कारण,रिपु ज़ंजीर में कसे गए,
पूछ रही है “ज्वाला ” कब तक ये गलती दोहरायेंगे,
आखिर कब तक आस्तीन के साँपों को दुध पिलायेंगे
लोभ,मोह रिश्तों के छल को अनदेखा करके क्या हम
निज स्वार्थ के चंगुल में जकड़, वीरों की बलि चढ़ायेंगे???