गर बस चले तो आह भी भरते ना दे मुझे
221 2121 1221 212
बंदिश लगाकर शिकवा करने ना दे मुझे ,
गर बस चले तो आह भी भरने ना दे मुझे ।
उलझन तिरा दिया हुआ क्या-क्या सिखाता है ,
उसने बनाया मोम पिघलने ना दे मुझे।
कहता है तेरे बिन रहा ना जाए और वो,
बेदर्द साथ-साथ भी चलने ना दे मुझे।
तेरे ही दिल की मलिका रहना चाहती ,
अपने मकान में भले रहने ना दे मुझे।
तेरे लबों पे मै हंसी बन के रहूं सदा
आंसू बना के पलकों से बहने ना दें मुझे।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर