देवताओं की कमी नहीं है मेरे शहर में
देवताओं की कमी नहीं है मेरे शहर में,
अच्छे इंसा यहां ढूंढ़ने से नहीं मिलते!!
दिल किसी राहगुजर से लग ही गया तो क्या,
दिल से दिल को मिलाने वाले नहीं मिलते!!
शराफत का मशवरा देते फिरते हैं लोग यहां पर,
जो त्योहारों में अपनी सगी मां से नहीं मिलते!!
नज़र भर के देखने की हसरत ही रही है मेरी,
जी भर के मुझे वो चाहने वाले नहीं मिलते!!
आजकल किसी को प्यार करना धंधा बन गया है,
मेरे प्यार को सूत-समेत लौटाने वाले नहीं मिलते!!
थका-हारा, बेबस-लाचार घर लौटता हूं जब भी मैं,
सुकूं से बैठकर मुझसे बात करने वाले नहीं मिलते!
घूमकर जब मैं किसी शाम अपना शहर देखता हूं,
मुझसा खुशनसीब इंसा ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते!!
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है, मेरे घर की ‘शशांक’,
मेरे दिल पर मरहम लगाने वाले लोग नहीं मिलते!!
©️🖊️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”