“मुझे ढूँढना”

“मुझे ढूँढना”
एक मुद्दत से मैं लापता हूँ, कहीं दिख जाऊँ तो मुझे बताना।
कभी ख्वाबों में, कभी सायों में, किसी भूली-बिसरी राहों में,
अगर मिल जाऊँ, तो मुझे जगाना।
मैं भी खुदा को खोज रहा हूँ, उन अधूरे सवालों में,
टूटी हुई उम्मीदों में, खामोश पड़े जवाबों में।
मुझे भी उससे शिकायत करनी है, जो मेरा अपना था,
पर अब अजनबी सा लगता है। जो मेरी बातें सुनता था,
पर अब खामोशी में भी नहीं दिखता है।
अगर कहीं दिखे मेरा अक्स, तो उसे कहना, कि अब लौट आए, या फिर हमेशा के लिए खो जाए….