Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Feb 2025 · 1 min read

चौपाई

चोपाई
सृजन शब्द -नैना बरसें
शांत रस

तन का पिंजरा ढहता जाये।
चैन कहाँ से मनवा पाये ।।
मोह फंद में उलझा रहता।
माया- माया हरदम कहता।।

तम के काले बादल छाये।
किये कर्म के फल तू पाये।।
अंतस के अब पट हैं खोले ।
रसना कृष्णा-कृष्णा बोले।।

रंग जगत के कैसे भाये
कितने ही मन धोखे खाये।।
जब से मैंने जग को जाना।
सोचा अब प्रभु को है पाना।।

नश्वर है माटी सी काया।
समझ बहुत देरी से आया।।
बैरागी मन होता जाता।
तुमसे मिलने की धुन दाता।।

जीवन संध्या अब है आई।
देता है अब साफ सुझाई।।
अब कोई संशय क्या बाकी।
चले नहीं कोई चालाकी।।

निशिदिन मेरे नैना बरसे ।
प्रभु दर्शन को मन है तरसे ।।
मेरे प्रभु अब जल्दी आओ।
भव से नैया पार लगाओ।।

सीमा शर्मा

Loading...