लालच में दौड़ता हुआ इंसान
विषय _ लालच में दौड़ता हुआ इंसान
आज हर कोई बस दौड़ रहा है
ना जाने खुद से ही कोई रंजिश है या फिर ये दौड़ना सिर्फ होड़ रहा है
इस कदर भगा रहे है ख़ुद को
बस दिलों दिमाग पर लोड रहा है
आख़िर क्या बदला है इस समय ने
जो खुद के लिए ही समय नहीं
ना ठीक से सो रहे ना ही ठीक से जाग रहे
बस दिन की शुरुआत से लेकर रात के अंधियारे तक भाग रहे
रिश्तों को संभालने के लिए हर संभव कोशिश करता है
फिर भी ना जाने क्यों हर रिश्ता एक दूजे से लड़ता है
इस बदलते हुए समय ने हर चीज को बदल दिया है
देकर लालच सुविधा का अपनापन तो छीन ही लिया है
सब कुछ हो गया है दिखावे के लिए
दोगले चेहरे लिए लोग घूम रहे
ना जाने ऐसी क्या पाने की चाहत रखी
बस भागते रहने को कह रहे
जिम्मेदारी तो पहले भी थी लेकिन वक्त का अभाव कभी दिखा नहीं
चाहे कुछ भी हो जाए मगर ईमान कभी बिका नहीं
मगर आज जितनी सुविधाएं है
उतना ही अभाव नजर आने लगा है
कभी कभी तो यूं लगता है मानो हर कोई हमें ठग रहा है
बदलते हुए समय में तो विश्वास ने भी बाजी मारी है
अपनों से परायापन और गैरों ने सब बागडोर संभाली है
इस क़दर भागते भागते ना जाने कब उम्र बढ़ चली
कब गया बचपना और कब जवानी भी ढली
वक्त रहते हुए इस बदलते वक्त में ख़ुद को संभाल लो
जैसे मंजिल को पाने के लिए ठाना था वैसे ही अपने आप को पाने के लिए मन में ठान लो
बहुत कुछ पाया है तुमने लेकिन खुद को खोने मत दो
जिंदगी इस क़दर जियो के आख़िरी पलों में ख़ुद को रोने मत दो।
रेखा खिंची ✍️ ✍️
@Magical-Roar