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8 Feb 2025 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . समर्पण

दोहा पंचक. . . . समर्पण

पागल मन की मर्ज़ियाँ, उत्पाती उन्माद ।
अधरों के मनुहार का, अधर करें अनुवाद ।।

दो नयनों की रार में, हार गए इंकार ।
तिमिर लोक में प्रेम के, उदित हुए उद्गार ।।

नैन शरों के घाव का, आलिंगन उपचार ।
बढ़ती दैहिक प्यास से, प्रखर हुए अभिसार ।।

अभिसारों के वेग में, बंध हुए निर्बंध ।
मौन सभी खंडित हुए, शेष रही मधुगंध ।।

साँसों में साँसें घुलीं, स्वप्न हुए साकार ।
सुर्ख कपोलों पर रहे, चिन्हित कुछ अभिसार ।।

सुशील सरना /8-2-25

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