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5 Feb 2025 · 1 min read

छल में इतना तेज कहाँ है,

छल में इतना तेज कहाँ है,
कुंद करें जो धार|
वो तो हरदम खुद में उलझा,
दुख का बन संचार ||1
कहाँ उद्वेग उसमें उतना,
जितना कल में वेग |
करे भयभीत संसार कैसे,
रखता कब वो तेग ||2
छल में इतना तेज कहाँ है……
जग में जिसने वेग भरा है
उसके है हम अंश |
गरल पीते करते नहीं भी,
भाव यहाँ अपभ्रंश ||3
छल में इतना तेज कहाँ है…..
रोते रहता जगमें वो तो,
रोग ग्रसित हो रोज।
कुंठो होकर मरते रहता,
स्वाद करे भी खोज ।।
_संजय निराला

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