अगन प्रेम की
अगन प्रेम की जब से मुझको लगी,
तू ही तू हर तरफ दिखने मुझको लगी।
भटका भटका हो जैसे मुसाफिर कोई,
जुल्फें शीतल सी छांव मुझको लगी।
दिन रात बस अब तू ही आए नजर,
प्रतिमान ईश्वर का तू मुझको लगी।
कहते हैं बड़ी बदरंग दुनिया है ये,
मुस्कुराहट तेरी सप्त रंगी मुझको लगी।
हंसी ख्वाब है ‘प्रेम’, तेरा आना प्रिये,
मेरी दुनिया अब मुकम्मल मुझको लगी।
इति।
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
9425822488