अब खजां से घिरा ये चमन हो गया

अब खजां से घिरा ये चमन हो गया
कैसी हालत में मेरा वतन हो गया
अम्न का गुलसितां जग में मशहूर था
अब वहां नफरतों का चलन हो गया
अब न शाखों पे चिड़ियों के नग़मे रहे
जाने क्यों उजड़ा उजड़ा चमन हो गया
शायरी का असर दिल पे होता नहीं
अब बनावट भरा क्यों सुखन हो गया
रौशनी की जगह डर बसा हर तरफ़
शहर भी लग रहा है कि वन हो गया
पा चुका वो मुहब्बत में आला मुकाम
जिसको महबूब अरशद वतन हो गया