बोल
बोल
बोल शूळ से बोल के, देवै घा गंभीर।
बसे बसाए पाड़ दे, नेह मोह नै चीर।।
बोल फूल से बोल के, हरले सबकी पीर।
घोळ मिठाई कान में, शीतल करै शरीर।।
बोलै कड़वे बोल जो, बैर कमावै रोज।
छोड बोलणा कटु वचन,बोल काम के खोज।।
बोल बिठावै अर्श पर, सब बोली का खेल।
बोल करा दे जंग बी, बोल मिलावै मेल।।
बोल करैं जग आपणा, बोल कमावैं बैर।
बोल बणावैं आपणा, बोल बणावैं गैर।।
तौल-तौल के बोलिए, वजनदार हों बोल।
बिन सोचें जो बोलते, बात – बात मैं झोल।।
सिल्ला बोलण सीख ले, बटै बोल का मोल।
नहीं बोलणा जाणते, मारै उननैं बोल।।
विनोद सिल्ला