वात्सल्य छंद विधान सउदाहरण

विधा:”वात्सल्य छंदाधारित मुक्तक”
(वात्सल्य छंद २३ मात्रिक,१४-९ यति,अंत लल )
14 मात्राएँ कलन लय अनुसार + 3 4 2 प्रयुक्त है
कहे सुभाषा इस जग में , भगत तेरे सब |
मन से भाव निकलते है , जगत तेरा तब |
कौन यहाँ पर रोके तुमको , सभी तेरे मग –
यही सोचता पकडूगाँ , चरण तेरे कब
लोग सामने कब बोले , जानिए कुछ सच |
वह पूरे षड्यंत्र कहें , सभी लाए रच |
सभी बने निर्दोष यहाँ , बने धवला सब –
जरा आँच को पाकर ही , सभी देते नच |
नहीं भीड़ का हिस्सा हूँ, बात कहते हम |
सदा सत्य को पहचाने , भरा करते दम |
क्या बिगाडे़गा दुश्मन भी , राह मेरी लख –
गति गज यहाँ रहेगी रे , दूर होगे गम |
जो भी तेरे अंदर है , ईश के दर कह |
उसकी जो रेखाएँ है , उसी में तू रह |
मन की गंगा चंगी है , सत्य सँग है तब –
साथ निभाने आएगा , दूर रहे न वह |
सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म०प्र०