दोहा चौका. . . . प्रणय
दोहा चौका. . . . प्रणय
वरण करूँ मैं मौन या , तुमको दूँ आवाज ।
प्रणय अनुभूति का प्रिये , कैसे हो आगाज ।।
मौन अधर फिर भी हुआ, प्रणय बोध संचार ।
सृजित प्रणय का नैन में, हुआ नवल संसार ।।
अनुरोधों के ज्वार की, ऐसी चली बयार ।
प्रणय क्षुधा बढ़ती गई, प्रखर हुए अभिसार ।।
पलक ओट से प्रेम के, मुखर हुए उद्गार ।
शनैः- शनै: दूरी घटी, स्वप्न हुए साकार ।।
सुशील सरना / 23-1-25