दोहा पंचक. . . . जीव
दोहा पंचक. . . . जीव
बिंदु मिले जब बिंदु से, एक बिन्दु हो जाय।
बिंदु बिछुड़ कर बिन्दु से, चौरासी फिर पाय।।
मन के मनके में मिलें, हमें राम अरु श्याम ।
मन का मनके में छुपा, मन का अंतिम धाम ।।
गाफिल क्यों अंजाम से, आखिर यह इंसान ।
तेरे इस अस्तित्व की , मिट्टी है पहचान ।।
धू – धू कर काया जली , साथ जले अरमान ।
दम्भी मैं की रुक गई, इच्छा भरी उड़ान ।।
यक्ष प्रश्न है जीव के, जनम-मरण का फेर ।
प्राण बिन्दु के मर्म को , हेर सके तो हेर ।।
सुशील सरना / 8-1-25