क्यों नहीं
गीतिका
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क्यों हमें इस तरह तुम भुलाती रही।
रात-दिन आपकी याद आती रही।
छा रही है बहुत आज खामोशियां,
बेवजह दिल हमारा दुखाती रही।
चाहतें हैं मगर पूर्ण होती नहीं,
फ़र्ज़ मजबूरियां भी निभाती रही।
बात बीते दिनों की अभी तक मगर,
नींद क्यों कर हमारी उड़ाती रही।
फूल खिलने लगे हो गई भोर है,
धूप उजली बहुत खिलखिलाती रही।
दृश्य था खूबसूरत जिसे देखकर,
गीत की पंक्तियां गुनगुनाती रही।
पल मुहब्बत भरे आ गये याद जब,
जिन्दगी भी बहुत मुस्कुराती रही।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य