कलमकार
अहसास मयस्सर हो जाते अक्सर
हर्फ हर्फ जोड़ लफ्ज़ बनाने में,
पर लफ्जों से
जिगर के पृष्ठों पर अल्फ़ाज़ सजाना मुमकिन नहीं..
अल्फाजों को ख्यालों पिरोना..
आवाज़ से अमृत टपकाना
उन ख्यालों को दिल तक पहुंचाना
सबके बस की बात नहीं..
बहुत कुछ सहा जिसने
जख्म भी खाए होंगे बेहिसाब
बेकली में दीवारों से की गुफ्तगू
भी…दर्द मुट्ठी में भींच..हंसी बांटी होगी
तब नासूर जख्मों की टीस इबारत बन उकेरी होगी
हां ..तब कलमकार का खिताब पाया होगा किसी ने