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21 Dec 2024 · 1 min read

#व्यंग्य

#व्यंग्य
■ समझ जाइए बस!
【प्रणय प्रभात】
आज सुबह-सुबह एक मित्रनुमा सज्जन का कॉल आया। उनकी शिकायत थी कि,
“बहुत दिनों (सालों) से मुलाक़ात नहीं हुई।”
मेरा सहज जवाब था-
“हाँ! एक अरसे से शायद मुझे आप से कोई काम नहीं पड़ा और आप को भी मेरी ज़रुरत नहीं पड़ी।”
मेरा जवाब थोड़ा तल्ख़ था, मगर ग़लत नहीं था। कड़कती सर्दी में लोंग-अदरक वाली कड़क चाय सा। आधा मिनट की बात के बाद उधर से कॉल कट चुका था। इधर दिल का बोझ हट चुका था। जो गुबार की तरह दिमाग़ पर छाया हुआ था।
वैसे भी सीज़न व साल के साथ मौसम और कैलेंडर की तरह बदल जाने वाले ऐसों-वैसों से बिना मतलब काहे की दुआ-सलाम और काहे की राम-राम? अवसरवादियों! आपको दूर से दंडवत प्रणाम। जय सियाराम।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●

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