मेरी काली रातो का जरा नाश तो होने दो
जो कर्म किए तूने उनसे घबराया है।
23/216. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Tum ibadat ka mauka to do,
*जिन पे फूल समझकर मर जाया करते हैं* (*ग़ज़ल*)
*अमृत-सरोवर में नौका-विहार*
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सिमराँवगढ़ को तुम जाती हो,
गर सीरत की चाह हो तो लाना घर रिश्ता।