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30 Oct 2024 · 1 min read

ख़्याल इसका कभी कोई

ख़्याल इसका कभी कोई
रख नहीं पता।
नजर से गिर के कभी कोई
उठ नहीं पता ।
वह दौर और था जीते थे
दूसरों के लिए,
किसी के वास्ते अब कोई
मर नहीं पता ।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद

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