पहचान
शेरनी की हुंकार हूं,
पायल की झंकार हूं।
सुंदरता की मूरत हूं,
मर्दानी की सूरत हूं।
फूलों की रंगत हूं,
सुर ताल की संगत हूं।
फिज़ा में फैली इत्र हूं,
मैं यत्र तत्र सर्वत्र हूं।
हौसलों की उड़ान हूं,
प्यार का जहान हूं।
हिमालय की ऊंचाई हूं,
सागर की गहराई हूं।
सूरज की गरमी हूं,
चांदनी की नरमी हूं।
मर्यादा की लकीर हूं
मीरा सी फकीर हूं।
मंदिरों की प्रार्थना हूं,
मस्जिदों का अज़ान हूं।
गुरबानी की बानी हूं,
बुद्ध की शांति हूं।
परंपरा की मशाल हूं,
अन्याय के खिलाफ ज्वाला हूं।
मैं दुर्गा, मैं रणचंडी,
मैं ही शक्ति अपार हूं।
सृष्टि की मैं रचना अद्भुत,
नवसृजन है गुण मेरा।
मैं अनंत, मैं असीम,
मैं ही नभ विशाल हूं।
मैं चुलबुली, मैं छुईमुई,
सूरत से मैं प्यारी हूं।
मैं अभिमानी, मैं सम्मानी,
मैं तलवार दो-धारी हूं।
मैं नारी हूं, हां! मैं नारी हूं।
संजीवनी गुप्ता