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18 Jul 2024 · 1 min read

जज़्बात-ए-इश्क़

अपने जज़्बात का इज़हार न कर पाए हम।
अश्क आँखों में था, तकरार न कर पाए हम।
मेरी हर याद में बस उनका ही चेहरा दिखता,
उफ़ बयाँ दर्द ये सरकार न कर पाए हम।

शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️

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