Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
12 Oct 2025 · 1 min read

शब-ए-ग़म की ज़ुबानी: ग़ज़ल

शब-ए-ग़म मिली है मुहब्बत में,
ये तो तोहफ़ा-ए-बेवफ़ाई है।
न कोई दोस्त, न कोई हमदम,
मेरी तन्हाई की गहराई है।

तुम्हारे बाद दिल का ये आलम,
हर एक मंज़र में रुस्वाई है।
सजा है बाज़ार-ए-दिल में फ़िर से,
वही नक़्श-ए-ग़म की दुहाई है।

फ़लक पर चाँद भी है तन्हा,
जैसे मेरी शब की परछाई है।
उमीद-ए-यार लेकर बैठे थे,
और शब-ए-ग़म की पेशवाई है।

ज़ुबाँ पर दर्द की कहानी है,
आँखों में ग़म की रुलाई है।
कभी तो तुम भी समझो मेरी,
जो दिल ने दास्ताँ सुनाई है।

हँसी को छोड़ दिया है हमने,
जब से ये आग दिल में लगाई है।
मिलता ही नहीं है अब साया,
जो तुझसे जुदाई पाई है।

मोहब्बत ने हमें तन्हा किया है,
ये कैसी अजीब लड़ाई है।
सितारे भी नहीं हैं अब रोशन,
ये कैसी काली रात आई है।

तुम्हारे ग़म से दिल की बस्ती में,
सिर्फ़ उदासी और तन्हाई है।
हवा भी अब परेशाँ लगती है,
ये कैसी फ़ज़ा बनाई है।

हर एक लम्हा एक सदमा है,
जो मेरी क़िस्मत में लाई है।
न जाने किस मोड़ पर तुम हो,
ये कैसी बेवफ़ाई है।

तुम्हारे बग़ैर दिल का हाल,
एक सूनी सी सराय है।
शब-ए-ग़म की ज़ुल्फ़ सुलझती नहीं,
ये कैसी काली घटा छाई है।

अश्क बहते हैं जैसे दरिया,
जो दिल ने चोट खाई है।
वो तो चले गए पर छोड़ गए,
ग़म की ये गहरी खाई है।

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

Loading...