जब मेरा अपना भी अपना नहीं हुआ, तो हम गैरों की शिकायत क्या कर

जब मेरा अपना भी अपना नहीं हुआ, तो हम गैरों की शिकायत क्या करते, किससे करते, कैसे करते, मैदान – ए – जंग में तो केवल हम ही अकेले लड़ने को निकले थे, लेकिन जब रणक्षेत्र में पहुँचा तो मेरे लिए यहाँ लोगों का कारवाँ बढ़ता चला गया ।
कवि – डॉ० मन मोहन कृष्ण