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27 May 2024 · 1 min read

सफ़र में आशियाना चाहता है

सफ़र में आशियाना चाहता है
ये कया ये दिल दीवाना चाहता है

मिटा कर अपनी हस्ती अपने हाथों
वजूद अपना जताना चाहता है

ग़लतियाँ लिख के पक्के अक्षरों में
आँसुओं से मिटाना चाहता है

एक अपने ही मुझसे ख़ुश नहीं हैं
वरना सारा ज़माना चाहता है

जो भी आता है नयी ठेस लाता
फिर भी दिल मुस्कुराना चाहता है

एक मुट्ठी सुकून ज़िंदगी से
दिल है कि छीन लाना चाहता है

जहाँ कोई न पूछे नाम पता
मुसाफ़िर वो ठिकाना चाहता है

जाने कितने सवाल पूछता है
ख़ुद को ही बरगलाना चाहता है

आख़िरी साँस उसकी गोद में हो
मौत भी सूफ़ियाना चाहता है

अपनी तक़दीर अपने आप लिखकर
मुक़द्दर आज़माना चाहता है

जो ठुकरा कर मुझे पछता रहे है
उन्हें बिलकुल भुलाना चाहता है

कोई स्कूल की घंटी बजा दो
ये बच्चा छुट्टी पाना चाहता है

कंचन

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