Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
22 May 2024 · 2 min read

तस्वीर

एक कहानी सुनी थी हमने,
अपने भारत की आज़ादी की ।
कितनी शहादत थी लोगो की,
अपनी धरती वापस पाने की ॥
व्यापारी बनकर आये थे वो,
धीरे धीरे राजा बन गए।
अत्याचारों की दिनोदिन,
नयी कहानी लिख गए ॥
अपनों को अपनों से था लड़वाया,
इन अंग्रेज सिपहसालारों ने।
पीठ पीछे कितने रजवाड़ो को हथियाया,
इन गोरे सरदारों ने॥
बड़ा विकट था,
तब जीवन जीना।
मुँह का निवाला,
तक उन्होंने छीना ॥
धीरे धीरे फैली,
एक थी चिंगारी।
आज़ादी पाने की,
शुरू हुई थी तैयारी॥
कोई गरम था, कोई नरम था,
आज़ादी की लड़ाई ही एक धरम था।
फांसी का भी न डर था,
लड़ने का वो जूनून चरम था॥
आखिर पा ही लिया,
हमने खुला आसमान।
अपना प्यारा,
एक नया हिंदुस्तान॥
अंत में भी वो खेल गए,
खुनी खेल निराला।
मजहब के नाम पर,
भारत माता का बंटवारा कर डाला॥
फिर भी धीरे धीरे बड़े,
हम विकास के नए पथ को पाने को,
चाहे कितना भी था,
अग्नि पथ वो विकट जीवन की ज्योत जगाने को॥
आगे बढ़ते बढ़ते,
हम भूल रहे हैं सच्चाई को।
प्रकृति से ही खेल रहे हम,
नहीं समझ रहे जीवन की गहराई को॥
पत्थर तोड़ दिए पर्वत के,
नदी की रेत को ख़त्म किया।
पेड़ काटे जंगल के,
और धरती को बंजर किया॥
धीरे धीरे कम हुए खेत,
इस प्रॉपर्टी के जंजाल में।
और महंगाई से,
हम बने कंगाल हैं॥
लड़ना हैं हमें अब,
भूख, गरीबी और भ्रष्टाचार से।
हर कोने खड़ा हैं,
शैतान झूठे शिष्टाचार में॥
आओ नयी ,
जंग लडे हम अपने हिंदुस्तान की।
तलाशे नयी उम्मीदे ,
और बनाये नयी तस्वीर
हिंदुस्तान की॥

महेश कुमावत

Loading...