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9 May 2024 · 1 min read

क्या पता मैं शून्य न हो जाऊं

अब ना करो नज़र अंदाज़
कोई तो कर लो मुझसे बात
क्या पता मैं शून्य हो जाऊं
बचपन भी ना रहा मेरा कुछ खास
दुख , दर्द , पीड़ा ने भी न छोड़ा मेरा साथ
पर कुछ अपने थे , जो थे मेरा सहारा
पर अब वो भी करते है हमसे किनारा
क्या पता मैं शून्य न हो जाऊं

पर ऐक बारी
लेना चाहता हू
मेरी माँ का आशीर्वाद
पिताजी से भी खाना चाहता हूँ
वो पहले वाली डांट
भाई को भी बता दू अब
मैं हु बिल्कुल अधूरा
कर ना पाया उनके सपनो को पूरा
उन दोस्तो से भी करलू इक बारी मुलाकात
बात करने का time नही था जिनके पास
क्या पता मैं शून्य हो जाऊ
थाम लो मेरा हाथ
ना छोड़ो मेरा साथ
ना छोड़ो मेरा साथ

The_dk_poetry

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