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2 May 2024 · 1 min read

लिप्त हूँ..

वहाँ बीते समय के कुछ,
मुड़े तुड़े लिखे कागज,
कुछ सूखे निर्माल्य,
हवा में उड़ आये पत्ते,
यहाँ से वहाँ उड़ते,
गिरते कुछ ढूंढते हैं…

शायद मेरे अस्तित्व को,
मेरे चित्रण को,
जिसके वो साक्षी रहे हैं,
कई कही अनकही,
बातों के जो प्रतिमान रहे हैं…

नये ठिकाने में मैं यहाँ,
फिर से नये चित्रण में,
नव निरूपण की,
संभावना में व्यस्त हूंँ,
चकराया सा..भरमाया सा…

बनने संवरने और फिर,
बिखरने की पुनरावृत्ति को,
जीवंत करने में लिप्त हूँ,
अनमना सा बीते ठौर संग
उस बीते समय के संग…
©विवेक’वारिद’*

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