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28 Apr 2024 · 1 min read

श्रम बनाम भ्रम

न वीर समझ ना कायर खुद को,
बस नाप – तौल हर पल खुद को,
अभिमान न, तनिक भी हो जाए
पथ से न पथिक तू भटक जाए।
मत भूल कि जीवन है नश्वर,
पल भर को भी तू न व्यर्थ कर ।

जो मांग मांग कर खाते हैं ,
कीड़े बनकर मर जाते हैं ।
श्रमरत रहना ही, है तप बड़ा,
इस बात को तू ना भूल जरा ।
काया मिली, शक्ति मिला ,
जा चीर पहाड़ रास्ता बना।

तीनों लोकों का वैभव तुझ में,
बाहर क्या खोजे जग में ,
क्यों समझे खुद को तुच्छ बड़ा,
अपमानित और दम्य सा ,
सत्य का संकल्प ले
ना कोई और विकल्प ले।
श्रम में है, वह तेज ऐसा ,
पत्थर में भी खिला दे फूल नया।

नतमस्तक होकर हर पल,
क्यों अपनी बाहें पसारता
क्या अपने भुजबल पर संदेह तुझे?
जो दर-दर भीख मांगता।
है स्वर्ग नरक का चक्र नहीं
सारा हिसाब यही होगा,
अपने कुकृत्यों का फल,
तू भोग कर ही जायेगा ।

कर्म होंगे जितने उज्जवल
जीवन होगा उतना निर्मल।
भ्रम से अब बाहर निकल ,
जा श्रम में खुद को लीन कर।

…ज्योति ✍️

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