ए चांद आसमां के मेरे चांद को ढूंढ ले आ,
बिहार-झारखंड के दलित साहित्य का समकालीन परिदृश्य | डॉ. मुसाफ़िर बैठा
तुम्हारे प्यार के खातिर सितम हर इक सहेंगे हम।
पर्वत के जैसी हो गई है पीर आदमी की
असफलता के डर से पीछे हटना हमें कभी भी सफल नहीं बनाता। अच्छी
उनके रुख़ पर शबाब क्या कहने
विवश मन
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
हाइकु (#मैथिली_भाषा)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
सरपरस्त
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
मुझको आवारा कहता है - शंकरलाल द्विवेदी
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
एड़ियाँ ऊँची करूँ हिम्मत नहीं है
The leaf trying its best to cringe to the tree,
तुम्हारे वास्ते हम ने गुलाल भेजा है
थोड़ी मैं, थोड़ा तुम, और थोड़ी सी मोहब्बत