किताबों में सूखते से गुलाब
अटल सत्य मौत ही है (सत्य की खोज)
ख़ुद से ही छिपा लेता हूं बातें दिल के किसी कोने में,
मन मंथन पर सुन सखे,जोर चले कब कोय
"गानों में गालियों का प्रचलन है ll
मेरे पास, तेरे हर सवाल का जवाब है
- जीवन का उद्देश्य कुछ बड़ा बनाओ -
ऐसे हंसते रहो(बाल दिवस पर)
मरने के बाद भी ठगे जाते हैं साफ दामन वाले
*भारतमाता-भक्त तुम, मोदी तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
महत्वपूर्ण यह नहीं कि अक्सर लोगों को कहते सुना है कि रावण वि
दिखने में इंसान मगर, काम सभी शैतान से
-हर घड़ी बदलती है यह ज़िन्दगी कि कहानी,
मैं तो कवि हुँ
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
दिलकश नज़ारा
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
आज के समय में हर व्यक्ति अपनी पहचान के लिए संघर्षशील है।