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21 Feb 2024 · 1 min read

अब हर्ज़ क्या है पास आने में

अब हर्ज़ क्या है पास आने में
जब आ ही गये हो बुतखाने में

आग को कोई फ़र्क़ न पड़ेगा
जल मगर जाओगे आज़माने में

वो अब भी वैसे ही मग़रूर हैं
उम्र गुज़र गयी है समझाने में

आंख तो देर से लगाये बैठे थे
कोई परिंदा न आया निशाने में

पाने का मज़ा शर्तिया अलग होगा
हाँ मग़र लुत्फ़ और है खो जाने में

दिल हल्का है माफ़ी मांग लो
ग़र हो गयी ख़ता कोई अनजाने में

एक राज़ अब समझे हैं ‘अजय’
सर कटते नहीं झुक जाने में

अजय मिश्र

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