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17 Feb 2024 · 1 min read

दो शे'र ( मतला और इक शे'र )

इक इक पल तिरे बिन……. काटना मुश्किल है ।
किसी और से तिरी यादों को बाँटना मुश्किल है ।।

यूँ तो जला दी हैं……… सब तस्वीरें बारी -बारी ।
ज़ेहन से उनके अक़्स को निकालना मुश्किल है ।।

©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम

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