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17 Feb 2024 · 1 min read

" ठिठक गए पल "

नव गीत

देखा रुप सुहाना ,
ठिठक गये पल !!
लगता है मुस्कानें ,
करती है छल !!

आँखमिचोली तेरी ,
धूप गुनगुनी !
सर्द हवाओं सी की ,
बात अनसुनी !
माथे पर पड़ते हैं ,
अनजाने बल !!

डोर प्रीत की बांधी ,
उड़ी पतंगें !
पेंच आँख के उलझे ,
रंग बिरंगे !
लगी लालसा ऐसी ,
अब लगे न टल !!

चढ़ी बहारें काँधे ,
खुशबू पसरी !
पवन निकलती छूकर ,
खोले गठरी !
सँवर गये तुम पल को ,
पल हुए नवल !!

रंगत है बासंती ,
मन को भायी !
आँखों में जागी है ,
फिर तरुणाई !
खुशियों के झरने हैं ,
बहते कलकल !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

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