प्यार का नाम देते रहे जिसे हम अक्सर
युद्ध घोष
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*मित्र ही सत्य का ख़ज़ाना है*
सुंदरता का मोह माया त्याग चुके हैं हम
मेरी नजरो में बसी हो तुम काजल की तरह।
पाँव की पायल
singh kunwar sarvendra vikram
आए हैं फिर चुनाव कहो राम राम जी।
जो तुम्हारी खामोशी को नहीं समझ सकता,
निगाहों में छुपा लेंगे तू चेहरा तो दिखा जाना ।
कवर नयी है किताब वही पुराना है।
दिवाली व होली में वार्तालाप