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15 Feb 2024 · 1 min read

चिंतन की एक धार रखो कविता

उधम के इस पावन युग में
खुद को ना बेकार रखो
अपने मन की उथल-पुथल में
चिंतन की एक धार रखो
महा समर के कुरुक्षेत्र में
गांडीव की टंकार रखो
अर्जुन बनकर प्यारे तुम
गीता का ही सार रखो
जब कोई मित्र भला कर जाए
मन से तुम आभार रखो
भटकन भरी भाग दौड़ में
अपना एक आधार रखो
भूल युगों की कुटिल कामना
निश्छल मन साकार रखो
अफसरवादी महादौर में
मन को तुम उदार रखो

रचनाकार ओम प्रकाश मीना

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