चले शहर की ओर जब,नवयुवकों के पाँव।
किसी ने हमसे कहा कि सरोवर एक ही होता है इसमें हंस मोती ढ़ूँढ़त
न जाने कौन रह गया भीगने से शहर में,
हरि कथन
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
बहुत कुछ पढ़ लिया तो क्या ऋचाएं पढ़ के देखो।
*रखो हमेशा इस दुनिया से, चलने की तैयारी (गीत)*
पानी के छींटें में भी दम बहुत है
धोखा मिला है अपनो से, तो तन्हाई से क्या डरना l
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
* लक्ष्य सही होना चाहिए।*
चांद भी आज ख़ूब इतराया होगा यूं ख़ुद पर,
जश्न आंखों में तुम्हारी क्या खूब नज़र आ रहा हैं...
मायड़ भासा मोवणी, काळजियै री कोर।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
प्रकृति ने चेताया जग है नश्वर