दिगपाल छंद{मृदुगति छंद ),एवं दिग्वधू छंद
‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ के 6 यथार्थवादी ‘लोकगीत’
मेरी सिया प्यारी को देखा अगर
*जाते तानाशाह हैं, कुर्सी को जब छोड़ (कुंडलिया)*
सारी उदासी उसके दिल के कोने में छुपा कर रख आई हूँ।
ज़िन्दगी कुछ नहीं हक़ीक़त में,
हाथ से मानव मल उठाने जैसे घृणित कार्यो को छोड़ने की अपील करती हुई कविता छोड़ दो।
वफ़ाओं की खुशबू मुझ तक यूं पहुंच जाती है,
सस्ते नशे सी चढ़ी थी तेरी खुमारी।
Healing is weird. Some days, you feel like you’re finally ok
Shyam Sundar Patel Wikipedia Biography
मेंरे प्रभु राम आये हैं, मेंरे श्री राम आये हैं।