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9 Aug 2023 · 1 min read

माँ

माँ
व्यवहार जानती थी
कहती थी
बेटी पराया धन है
उसको अपने घर
जाना है
मन दुखता था
पर कुछ कह
नहीं सकती थी
सच तो था
पर स्वीकारते
डरती थी
बहुत याद आता था
वो घर आँगन
पर बार बार
जा नहीं सकती थी
जाती भी तो
अपना सब छोड़
लम्बा रह भी
नहीं सकती थी
सब भूल-भाल
जिनके इर्द गिर्द
जीवन घूमने लगा
वो बच्चे भी व्यवहार
जानते हैं
माँ,करियर ज़रूरी
है ना
अपना भी तो सब
देखना है
तब लगा हमने ये सब
क्यूँ नहीं सीखा
हम अपने को
व्यवहार क्यूँ नहीं
सिखा पाये
तब पीछे मुड़कर
देखने का हौसला
नहीं था
आज आगे बढ़ने की
राह नहीं
पीछे वाले सुखी रहें
आगे वाले ख़ुश रहें
सोते जागते बस,
यही एक
चाह रही

डॉ निशा वाधवा

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