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27 Jul 2023 · 1 min read

नदी

आप नदी को चाहे जितना सिकोड़ सकते हैं,
मन भर निचोड़ सकते हैं,
क्योंकि नदी अपने प्रेमी के बल से बल पाती है,
उसी के बरसते स्नेह के बल पर बलखाती है,
जब तक उसका प्रेमी उससे रूठा है,
आप चाहे जितना अत्याचार कर लो,
वह सह लेगी,
अपने सूखते तन से उड़ती ,
रेत की वेदना को सहेज कर रख लेगी,
किंतु जिस दिन उसका प्रेमी,
आकाश में आएगा,
श्यामल मेघ बनकर छाएगा,
नदी के आंचल में मूसलाधार प्रेम,
छलकाएगा , झमझमाएगा,
उस दिन नदी ,
पुनः अपने आंचल के,
उस भाग को प्राप्त कर लेगी,
जिसे तुमने अपनी बपौती समझकर,
कब्जा कर लिया था ,
अपना आशियाना ,
अपना बाजार बसा लिया था,
नदी निर्दय नही है,
वह सहज है,
वह सरल है,
सत्य तो यह है मनुष्यों,
कि तुम्हारा ही अस्तित्व,
इस पूरी वसुधा के लिए गरल है।

#Kumar Kalhans

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